किमतचेहरों की होती है

बैठ जाता हूं मिट्टी पे अक्सर. क्योंकि मुझे अपनी औकात अच्छी लगती है..

मैंने समंदर से सीखा है जीने का सलीक़ा, चुपचाप से बहना और अपनी मौज में रहना .!
महँगी से महँगी घड़ी पहन कर देख ली, वक़्त फिर भी मेरे हिसाब से कभी ना चला ..!!
युं ही हम दिल को साफ़ रखा करते थे .. पता नही था की, 'किमत चेहरों की होती है 
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